धूमल 10 अप्रैल को 75 साल के हो रहे हैं, उन्हें 4 दशक से ज्यादा का राजनीति का अनुभव है. इस दौरान वो 2 बार सीएम, 4 बार विधायक और 3 बार सांसद रहे.
प्रेम कुमार धूमल का जन्म 10 अप्रैल 1944 को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के समीरपुर गांव में कैप्टन महंत राम के घर हुआ. इन्होंने डीएवी हाईस्कूल हमीरपुर से मैट्रिक, डीएवी कॉलेज जालंधर से ग्रेजुएशन और दोआबा कॉलेज जालंधर से 1970 में एमए (इंग्लिश) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. छात्र जीवन में उनकी खासी रूचि खेलों और राजनीति में रही. वो कॉलेज वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रहे.
पढ़ाई पूरी करने बाद प्रेम कुमार धूमल पंजाब यूनिवर्सिटी (जालंधर) में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए. फिर दोआबा कॉलेज जालंधर चले गए. यहां नौकरी करते हुए धूमल ने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी पंजाब से वकालत की पढ़ाई की. प्रोफेसर धूमल की शादी शीला देवी से हुई, उनके दो बेटे अनुराग ठाकुर और अरुण ठाकुर हैं. अरुण राजनीती मैं नहीं हैं इसलिए हिमाचल के बहार उन्हें काम लोग जानते हैं लेकिन अनुराग राजनीति का बड़ा चेहरा हैं, वो हमीरपुर संसदीय सीट से लगातार तीन बार सांसद हैं और भाजपा युवा मोर्चा तथा BCCI के अध्यक्ष भी रह चुके हैं
करीब 80 के दशक से राजनीति से जुड़े प्रेम कुमार धूमल को पहली बार 1980 में बीजेपी संगठन में अहम जिम्मेदारी मिली. उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का सचिव बनाया गया और फिर 1982-1985 तक वो इसके उपाध्यक्ष भी रहे. इस दौरान ने उन्होंने बीजेपी संगठन को मजबूत बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत की. भले ही धूमल को आरएसएस की नर्सरी में राजनीति का ककहरा सीखने को नहीं मिला, लेकिन आज संघ के कई नेताओं से उनके गहरे ताल्लुक हैं.
प्रेम कुमार धूमल की गिनती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में होती है. इस बात का गवाह साल 1984 का वो दौर है, जब बीजेपी के दिग्गज नेता जगदेव चंद्र ने हमीरपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तो उस वक्त नरेंद्र मोदी (तत्कालीन- हिमाचल के बीजेपी प्रभारी) ने ही धूमल के नाम को आगे बढ़ाया. यह उनके चुनावी राजनीति में प्रवेश का एक दुर्लभ संयोग था. हालांकि, धूमल यह चुनाव कांग्रेस नेता नारायण चंद पराशर से हार गए. लेकिन उन्होंने साल 1989 में अपनी हार का बदला लिया और 1991 में सीट बरकरार रखी.
साल 1985-93 तक धूमल बीजेपी जनरल सेक्रेटरी पद पर रहे. 1993 में जगदेव चंद्र का निधन हुआ. इस वक्त तक प्रेम कुमार धूमल की गिनती प्रदेश के बड़े नेताओं में होने लगी थी, और 1993 वो हिमाचल प्रदेश की बीजेपी इकाई के अध्यक्ष बने. वो इस पद पर 1996 तक रहे. इस दौर में वो एक बार फिर बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव-1996 के रण में थे, लेकिन इस बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
1997 के विधानसभा चुनावो मैं धूमल बमसन सीट से चुनाव मैं उतरे जीते भी लेकिन इसबार इनाम बड़ा मिलने वाला था धूमल विधायक दल के नेता चुने गए माने की मुख्यमंत्री 24 March 1997 को प्रेम कुमार धूमल ने पहली मर्तबा मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली और प्रदेश मैं भाजपा की पहली 5 साल चलने वाली सरकार बनाई
लेकिन आपसी गुटबाज़ी के चलते भाजपा 2003 के चुनाव मैं सत्ता से बाहर हो गयी धूमल संगठन के काम मैं जुटे रहे इस बीच जब 2007 मैं पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले मैं भाजपा नेता एवं हमीरपुर से सांसद सुरेश चंदेल को इस्तीफ़ा देना पड़ा तो उपचुनाव मैं धूमल खड़े हुए और चुनावी जीत हासिल की इसी साल विधानसभा चनाव हुए और भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया धूमल एक बार फिर मुख्यमंत्री बने लेकिन 2012 के चुनावों में भाजपा सत्ता से बेदखल हो गयी
पांच साल बाद 2017 में पार्टी ने धूमल की सीट बदल दी इस बार वे सुजानपुर से मैदान में थे और पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी थे सामने चुनाव लड़ रहे थे राजिंदर राणा जो धूमल के शिष्य थे लेकिन मुख्यमत्री उम्मीदवार होने के बावजूद धूमल चुनाव हार गए और अब लगभग राजनीतिक सन्यास की तरफ बढ़ रहे हैं
चूँकि प्रेम कुमार धूमल के समय सड़कों का विकास अधिक हुआ वे सड़क वाले मुख्यमंत्री के नाम से भी जाने जाते हैं