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कांग्रेस में एक-दूसरे को निपटाने का खेल

जिसका चल रहा दांव, वही दे रहा है शह और मात

Hamirpur : इस बार हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेसी नेताओं में मनभेद कुछ ज्यादा ही गहरा गए हैं। ऐसा लग रहा है कि टिकट मिलने तक कुछ भी हो सकता है। असल में हमीरपुर सीट पर कांग्रेस में एक-दूसरे को निपटाने का खेल चला हुआ हैं। दो गुटों में बंटी कांग्रेस में जिसका भी दांव चल रहा है वही शह और मात देने में लगा है।

एक दो नेता को छोड़ कर कोई बड़ा नाम चुनाव लडऩे को तैयार ही नहीं है। स्वयं चुनाव लडेंग़े नहीं जबकि आपस की लड़ाई अंदरखाते खूब चला रखी है। अब सीधे-सीधे तो भिड़ नहीं सकते सो शराफत का चोला ओढ़कर एक-दूसरे को काबिल और सुपर काबिल का दर्जा देने में लगे हुए हैं। एक कहता है फलां टिकट के काबिल है तो दूसरा गुट कहता है कि फलां से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता।

ऐसी सियासी तारीफ की जा रही है कि सामने वाला अंदर तक ‘सड़’ जाए, लेकिन बोल भी कुछ न सके। हमीरपुर सारे खेल के केंद्र में हैं। यहां कांग्रेस में स्थिति रोचक बनी हुई है। हमीरपुर के गजोह में हुए कार्यक्रम के बाद ऐसे शब्दबाण चले कि दोनों गुटों की खाई इतनी गहरी हो गई है जो कम से कम चुनावों तक भरने की स्थिति में नहीं लगती है। राजेंद्र राणा के पुत्र अभिषेक महीनों से चुनाव लडऩे को तैयार बैठे हुए हैं।

पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह खुलेआम उनकी पैरवी भी कर गए, लेकिन यह बात दूसरे गुट को सूट नहीं करती। लिहाजा खुद सुखविंद्र सिंह सुक्खू नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्रिहोत्री का नाम लिए जा रहे हैं। वे बाकायदा बैठक में उन्हें सशक्त प्रत्याशी बता चुके हैं। जवाबी अटैक कुछ ऐसा हुआ है कि फिलहाल शॉर्टलिस्ट किए गए प्रत्याशियों में खुद सुक्खू का ही नाम डल गया है। अब कोई कहे भी तो क्या कहे। इस सारे खेल में पार्टी सीधे-सीधे दो गुटों में दिखती है। सुखविंद्र सुक्खू और अभिषेक राणा के नाम आगे किए गए हैं। लेकिन इस बीच मनभेद की खाई कुछ ज्यादा ही गहरी हो गई है। मान लो टिकट उक्त दोनों में से ही किसी एक को मिल गया तो मनभेदों की खाई का क्या होगा, यह अपने आप में यक्ष प्रश्न सरीखा है।

आवेदन करने वाले दुखी

अभिषेक राणा को छोड़ दें तो बाकी आवेदनकर्ताओं का तो कोई नाम तक नहीं ले रहा। नाम ऐसे-ऐसे लोगों के लिए जा रहे हैं जिन्होंने न तो आवेदन किया था और न ही वे चुनाव लडऩा चाहते हैं। ऐसे में उनकी भी मायूसी यदा-कदा झलक ही जाती है। फौजी कोटे से टिकट की मांग करने वाले कर्नल विधि चंद लगवाल तो यहां तक कह चुके हैं कि पार्टी यदि आवेदन करने वालों से किसी को टिकट नहीं देती है तो वे आवेदन फीस के तौर पर दी गई 50 हजार की राशि वापस लेंगे। हालांकि फौजी कोटे से कर्नल धर्मेंद्र पटियाल ने भी आवेदन कर रखा है, अभी ऐसी बात उनकी तरफ से नहीं आई है।

मसला-ए-सुरेश चंदेल

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे सुरेश चंदेल अलग ही चर्चा में चले हुए हैं। यह अलग बात है कि स्थानीय कांग्रेस में इसे शायद ही कोई सुन रहा हो। पिछले दो महीने से यही चल रहा है कि आज भी दिल्ली गए हैं और पहले भी दिल्ली गए थे। वे इनकार भी नहीं करते, बल्कि सरेआम मान रहे हैं कि हां कांग्रेस से बात चली हुई है। जितनी देर से बात चली हुई है, अब तक तो परिणाम सामने आ जाना चाहिए था। अब चंदेल की मानें तो वे समय का इंतजार कर रहे हैं। कांगे्रेस का एक खेमा उन्हें लेकर कुछ न कुछ शिगुुफे छोडऩे से पीछे नहीं रहता है। मौजूदा स्थिति में समझना थोड़ा मुश्किल है कि सुरेश चंदेल के आने या न आने से अब किसी का कुछ बिगड़ेगा भी या नहीं।

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