अक्सर देखा जाता है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला दूध नालियों में बहकर व्यर्थ हो जाता है। लेकिन राजधानी के सत्तीबाजार में स्थित राम-सा-पीर मंदिर में दुग्धाभिषेक का दूध बहाया नहीं जाता। सैकड़ों लीटर दूध प्रसाद स्वरूप भक्तों को बर्तन में भरकर बांट दिया जाता है। मंदिर में यह परंपरा बरसों से चली आ रही है। दूध का प्रसाद ग्रहण करने के लिए दूर-दूर से भक्त लोटा, बोतल और बर्तन लेकर पहुंचते हैं। मंदिर के सेवादार बिना आनाकानी के बर्तनों में दूध भर देते हैं।
राम-सा-पीर मंदिर के प्रभारी ट्रस्टी रघुनाथ शर्मा बताते हैं कि दुग्धाभिषेक का दूध व्यर्थ बहाने के बजाय भक्तों को वितरित करने की परंपरा किसी और मंदिर में नहीं निभाई जाती। ट्रस्ट की ओर से सालों पहले मात्र 11 लीटर दूध से अभिषेक किया जाता था। धीरे-धीरे श्रद्धालु भी पैकेट में दूध लेकर आने लगे। राम-सा-पीर के भक्तों की संख्या इतनी बढ़ी कि दुग्धाभिषेक में सैकड़ों पैकेट दूध एकत्रित हो जाता है।
ऐसे में समाज के बुजुर्गों और पूर्व ट्रस्टियों लक्ष्मीनारायण शर्मा, बुलाकीलाल शर्मा, कन्हैयालाल शर्मा समेत वरिष्ठ सामाजिक सदस्यों ने निर्णय लिया कि दूध को व्यर्थ बहाने के बजाय उसे प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाए। शुरू-शुरू में श्रद्धालु हिचकिचाते थे कि दुग्धाभिषेक का दूध कैसे ग्रहण करें। धीरे-धीरे जागरूकता आने लगी और अब यह स्थिति है कि हर साल दुग्धाभिषेक पर अर्पित दूध का प्रसाद लेने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
सुबह से लेकर दोपहर तक अभिषेक होता है और फिर बाद मैं बंटता है दूध