5 फरवरी की बैठक में आरक्षण का दायरा सिमटाने की हुई कोशिश मंत्रियों सुरेश भारद्वाज वीरेंद्र कंवर, रामलाल मार्कंडेय को जिम्मा केवल बीपीएल को आरक्षण व 4 लाख आय सीमा का था प्रस्ताव
जनरल कोटा आरक्षण पर सरकार के भीतर नया खेल चल रहा है। कुछ अफसरों के स्तर पर इस कोटा का दायरा सिमटाने की कोशिश हो रही है। 5 फरवरी को हुई कैबिनेट में आखिरी समय में लाए गए इस मसले पर आय सीमा 4 लाख करने और जनरल कैटेगरी को केवल बीपीएल में ही यह आरक्षण देने का प्रस्ताव सामने रखा गया। काफी चर्चा के बाद कैबिनेट ने इस चालाकी को भांप लिया और फिर मामला तीन मंत्रियों की कमेटी को रैफर कर दिया। इस मसले को शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज, पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर और कृषि मंत्री डॉ. रामलाल मार्कंडेय पहले समझेंगे और फिर सारे विषय का अध्ययन कर कैबिनेट के सामने रिपोर्ट रखेंगे।
रिपोर्ट बताएगी कि आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को प्रभावित किए बिना कैसे 10 फीसदी जनरल कोटा आरक्षण को इकोनॉमिक वीकर सेक्शन तक पहुुंचाया जाए? भारत सरकार ने 31 जनवरी को जारी गाइडलाइंस में इसके लिए परिवार की सालाना आय सीमा 8 लाख रुपये रखी है। साथ ही 5 हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि वाले, 1000 वर्ग फुट से ज्यादा के आवासीय प्लॉट वाले, 100 वर्ग यार्ड के शहरी क्षेत्रों में आवासीय प्लॉट वाले इस आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे लेकिन कैबिनेट में रखे गए प्रस्ताव में पारिवारिक आय सीमा 4 लाख करने का प्रस्ताव रखा गया। साथ ही कहा गया कि इसे केवल बीपीएल के दायरे में ही दिया जाए, अन्यथा वर्तमान में लागू आरक्षण रोस्टर प्रभावित होगा। इससे मंत्रिमंडल सहमत नहीं है।
गौरतलब है कि इस बारे में संसद से 103वां संविधान संशोधन पास होने के बाद जयराम सरकार इस आरक्षण को राज्य में लागू करने की मंजूरी 19 जनवरी की कैबिनेट में दे चुकी है।
चूंकि भारत सरकार ने इसकी गाइडलाइंस 31 जनवरी को तय की, इसलिए इसके बाद ही इसे राज्य में लागू करने की प्रक्रिया पर फैसला लेने के लिए मसला 5 फरवरी को कैबिनेट में रखा गया। अब कई मंत्रियों में भी अंदेशा है कि जिस तरह प्रस्ताव कैबिनेट में आया, उसमें इस आरक्षण को सिमटाने की कोशिश हो रही है, जबकि सरकार जनरल कैटेगरी में आर्थिक आधार पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस दायरे में लेना चाहती है। केंद्र सरकार ने बेशक अब जनरल कैटेगरी को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण दिया हो, लेकिन हिमाचल में क्लास थ्री और फोर के पदों में पहले से जनरल कैटेगरी को 8 फीसदी आरक्षण है।
यह बीपीएल के नाम पर मिल रहा है। एससी, एसटी और ओबीसी को यह 7 फीसदी है। अब यदि 10 फीसदी नया कोटा भी लागू करना है तो फार्मूला ऐसा बनाना होगा कि पुरानी व्यवस्था को प्रभावित किए बिना ज्यादा लोग इसमें ले लिए जाएं। यहां नौकरियों में आरक्षण दो तरह से मिलता है। एक है वर्टिकल, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी है। दूसरा है होरिजोंटल, जिसमें बीपीएल है। अब नए आरक्षण से यह पुरानी प्रक्रिया बदल रही है।
पूर्व सैनिक कर्मचारियों की डिमोशन पर फिलहाल रोक
- चुनावी माहौल में 9 जनवरी के फैसले से पीछे हटी सरकार
- पहले 2008 से सीनियोरिटी तय करने का हुआ था फैसला
शिमला। सरकारी महकमों में नियुक्त पूर्व सैनिक कर्मचारियों को 2008 की स्थिति के आधार पर डिमोट करने के अपने फैसले से राज्य सरकार अभी पलट गई है। 9 जनवरी को कैबिनेट ने फैसला लिया था कि पूर्व सैनिकों के केस में सुप्रीमकोर्ट के फैसले को 29 दिसंबर, 2008 को मौजूद स्थिति के हिसाब से ही लागू किया जाए। मसला सेना की वरिष्ठता सिविल में देने से संबंधित है, जिसे सुप्रीमकोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसे लागू करने के लिए निर्देश जारी करने के बजाय कार्मिक विभाग ने एक महीने बाद 5 फरवरी को दोबारा यह मामला कैबिनेट में रखा और तर्क दिया गया कि इसे लागू करने में पेचीदगियां हैं।
कहा गया कि यदि 2008 से पूर्व सैनिक कर्मचारी डिमोट करने हैं तो सभी विभागों में रिव्यू डीपीसी होगी। पूर्व सैनिक करीब 30 हजार हैं, इसलिए दो साल का वक्त डीपीसी रिव्यू में ही लग जाएगा। संभव है इससे लीटिगेशन भी बढ़े। एक विकल्प यह भी दिया गया कि सुप्रीमकोर्ट का फैसला आने तक यानी वर्ष 2018 तक ऐसे ही चलने दिया जाए और भविष्य के लिए इस फैसले को लागू किया जाए, लेकिन फिर बात उठी कि इससे गैर फौजी कर्मचारी नाराज होंगे।
चूंकि वक्त लोकसभा चुनाव का है, इसलिए यह मौखिक निर्देश देते हुए मसला वापस ले लिया गया कि फिलहाल यथास्थिति ही बरकरार रखी जाए। इसी मामले में 9 जनवरी को हुई कैबिनेट में फैसला हुआ था कि सुप्रीमकोर्ट का ऑर्डर 29 दिसंबर, 2008 को मौजूद स्थिति के आधार पर लागू होगा। यानी इससे पहले जिसे वरिष्ठता मिली है, वह नहीं छेड़ी जाएगी। इसके बाद इसी अनुसार वरिष्ठता बदली जाएगी। पूर्व सैनिक कर्मचारी डिमोट होंगे पर उन्हें कोई वित्तीय नुकसान नहीं होगा, क्योंकि पे प्रोटेक्शन सरकार ने पहले ही दे दी है।